विश्वविद्यालय के शिक्षक भी एपीआइ से राहत के हकदार
6>>पदोन्नति के लिए एकेडमिक परफॉर्मेस इंडिकेटर सुविधा की मांग
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : सातवें वेतन आयोग के अंतर्गत बनी समिति नए नियमों के निर्धारण में जुटी है। ऐसे में विश्वविद्यालय शिक्षकों की ओर से लगातार विभिन्न विषयों को लेकर समिति का ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। इन विषयों में खासतौर पर एकेडमिक परफॉर्मेंस इंडिकेटर (एपीआइ) के मोर्चे पर ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) की तरह विश्वविद्यालय शिक्षकों को भी राहत दिया जाना अहम है। 1नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) के अध्यक्ष डॉ. एके भागी ने बताया कि जिस तरह से यूजीसी के अंतर्गत विश्वविद्यालय व कॉलेज आते हैं, उसी तरह तकनीकी संस्थान एआइसीटीई के अंतर्गत आते हैं। इन संस्थानों में अध्यापन में जुटे शिक्षकों को 7 नवंबर, 2015 तक एपीआइ से राहत दी गई। डॉ. भागी कहते हैं कि हमारी आरंभ से ही मांग है कि विभिन्न विषयों के साथ समिति इस मामले में भी विश्वविद्यालय शिक्षकों को राहत प्रदान करें। इसके अलावा वेतन विसंगति भी एक अहम विषय है और शिक्षकों का मनाना है कि विश्वविद्यालय में न सिर्फ रुकी हुई नियुक्ति प्रक्रिया जल्द शुरू हो बल्कि किसी भी पद के रिक्त होने के छह माह के भीतर ही उसपर नई नियुक्ति सुनिश्चित करने की व्यवस्था लागू हो। 1इस विषय में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर, प्रो. प्रग्नेश शाह और दिल्ली राज्य के संयोजक अनुराग मिश्र का कहना है कि हमने भी इस काम में जुटी समिति को एक मांगपत्र सौंपा है। इसमें मुख्य रूप से एपीआई स्कीम को खत्म करने और पुराने सभी मामलों में इससे छूट दिए जाने की बात कही है। इसके अलावा सातवें वेतन आयोग के अनुसार जो वेतनमान दिए जाए उन्हें सेवा शर्तो के साथ न जोड़ा जाए। पदोन्नति समय आधारित हो, जिसके लिए उचित पदोन्नति योजना बने। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को कम से कम चार पदोन्नति, विश्वविद्यालय स्तर पर रिसर्च एवं इनोवेशन क्लस्टर शुरू करने, विश्वविद्यालय व कॉलेज स्तर पर शिकायत निवारण प्रकोष्ठ बनाए जाने और तदर्थ शिक्षकों के बजाय स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जल्द शुरू की जाए।
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