सोलह साल तक करी तपस्या, सत्रह में हम हार गये
मानवता अब तार-तार है, पिछले दिन बेकार गये
हमने पूरी तन्मयता से, शिक्षक का सपना पाला था
जब संकट में थी बेसिक शिक्षा, हमने ही उसे सम्हाला था
तुम भूल गये उन घड़ियों को, जब शिक्षा के दिन भी काले थे
हर तरफ अँधेरा छाया था, और लटक रहे जब ताले थे
तब हमने घर-घर जा करके, शिक्षा की नब्ज टटोला था
जो बंद पड़े थे विद्यालय, अपने हाँथों से खोला था
घड़ी कहे जाओ स्कूल, जब बच्चा-बच्चा बोला था
तकली के तक-तक, धिन-धिन में, हर बच्चे को तोला था
तब भरी जवानी थी अपनी, शिक्षा की अलख जगाई थी
तुम इतिहास उठाकर देखो तो, इक नयी रोशनी आई थी
दे सको अगर तो लौटा दो, अपना वह समय जवानी का
सौगन्ध तुम्हारी हे मात्रभूमि, वह कर्ज दूध और पानी का
चुकता करके दिखला देंगे, जो ढोंग करें आजादी का
हम स्वाद चखा दें उनको भी, जो दम भरते बर्बादी का
हम और नहीं सह सकते अब, सिंहासन आज हिला देंगे
ये भूखा प्यासा कुनबा है, तुमको भी यही सिला देंगे
सत्ता के गलियारों में परिवार हमारा चीखा है
हम एक घाट पर पानी अब, तुमको भी आज पिला देंगे
हम तो जीवन से हार गये, पर हार तुम्हारी भी होगी
यह वक्त तुम्हें भी देखेगा, जो भूलें तुमने की होगी
तुम भूल सुधारो अपनी अब, ओ यूपी सत्ता के भोगी जी
मँझधार भवँर में है नैया, उस पार करो तुम योगी जी
🌹 साकार 🌹🙏
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Friday, 28 July 2017
शिक्षामित्रों की व्यथा बताती एक कविता
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